यादों के झरोखे भाग ८
डायरी दिनांक २१/११/२०२२
दोपहर के तीन बजकर तीस मिनट हो रहे हैं ।
रूपा की कथा को सुनकर किसी का भी विचलित हो जाना सामान्य ही है। साथ ही साथ इस कथानक में एक ममतारहित माता पिता के चरित्र की अभिव्यक्ति होती है। हालांकि उन्हें ममतारहित कह देना मेरे विचार में पूरी तरह सही नहीं होगा। परिस्थितियों से थका मन अक्सर शांत हो जाता है। फिर उस मन में भावनाओं का स्थान शेष नहीं रहता।
कितने ही ऐसे उल्लेख हैं जबकि किसी युद्ध में कितने ही अपनों को खो देने बाले युद्ध के विजयघोष सुन अपनी ममता का परित्याग कर देते थे। रावण पुत्र अक्षयकुमार का अशोक वाटिका में संहार होने के बाद भी रावण रोया नहीं था। पर जब युवराज इंद्रजीत ने हनुमान जी नागपाश में बांध दिया था, उस समय प्रसन्नता व्यक्त करने में पीछे नहीं रहा।
नीति कहती है कि ' विभुक्षितः किं न करोति पापं, विभुक्षा जनाः निष्करुणाः भवंतिं ।"
परिस्थितियों से मजबूर व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है। भूखा मनुष्य करुणारहित होता है।
विभिन्न पौराणिक कथाओं में धर्म की परीक्षा उन स्थितियों में ली गयी थी जिन परिस्थितियों में किसी का भी धर्म को त्याग देना कोई अधर्म नहीं माना जा सकता है। उसके उपरांत भी क्या उस महान धर्म वीरों ने उस विषम परिस्थितियों में केवल धर्म का ही अबलंबन लिया था, यह एक बड़ा प्रश्न हो सकता है।
एक बार जब मैं आगरा में नियुक्त था, उस समय मैंने एक कुतिया को खुद के जन्मे बच्चे को ही मारकर खाते देखा था। एक माॅ चाहे वह श्वान ही थी पर उसके द्वारा अपने जन्मे बच्चों में से किसी एक का वध कर देना कितना कठिन रहा होगा। शायद वह उस अवस्था तक पहुंच चुकी थी जहाँ करुणा आदि की गाथाएं महत्वहीन हो जाती हैं।
रूपा के आदमी का दूसरा विवाह हो गया। तथा एक बार वह अपनी पत्नी को लेकर भी ठेकेदार के घर आया। दूसरे विवाह के बाद भी उसका रूपा के प्रति स्नेह प्रत्यक्ष था।
रूपा के निधन के कुछ समय बाद ठेकेदार के बड़े लड़के का विवाह हो गया। सुना तो यह भी गया कि वह कहीं दूर से उस कन्या को लेकर आया था। वह स्त्री कौन थी, कहाँ से आयी थी, किन परिस्थितियों में रहती आयी थी पर वह बेमने तो उसके साथ नहीं रही थी। बाद में वह ठेकेदार की एक नातिन और एक नाती की माॅ भी बनी। शायद उसे भी इन विषम परिस्थितियों में रहने की आदत होगी। इस कारण उसे कभी दुखी नहीं देखा गया।
फिर ठेकेदारिन की तबीयत खराब होने लगी। उसकी स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गयी। उनको भी किसी डाक्टर को नहीं दिखाया गया। उनके शरीर से फफोले से उठने लगे। दिन रात दर्द में चीखते चीखते वह शांत हो गयीं।
ठेकेदार भी वह अधबना मकान बेचकर दूसरी गली में किराये पर चले गये। मुझे कभी भी समझ में नहीं आया कि उन्होंने किन परिस्थितियों में अपना मकान बेचा। पर कुछ भी हो, कोई तो बजह रही होगी। मेहनत से बनाया अपना घोंसला कोई चिड़िया भी आसानी से नहीं छोड़ती। बहुत बार सच्ची परिस्थितियां किसी के सामने नहीं आती हैं।
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।
Pratikhya Priyadarshini
22-Nov-2022 12:30 AM
Bahut khoob likha hai aapne sir 🌺🌸👌
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Teena yadav
21-Nov-2022 08:44 PM
Amazing
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Haaya meer
21-Nov-2022 08:08 PM
Amazing
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